सब कह गये सब कुछ तुम्हारी प्रशंसा में,
कुछ भी न बचा
कुछ भी न बचा
मैं कहता हूँ – तुम सुन्दर हो,
इतनी सादी ईमानदारी से किसी ने न कहा
इतनी ईमानदार शादगी से किसी ने न कहा!
वे आयेंगे, जब गीत मुरझायेंगे
होठों को सिकोड़ देंगी झुर्रियाँ
और नैन सूख जायेंगे, वे आयेंगे
मुस्कुराते हुये गायेंगे मुकरियाँ
और हम न समझ पायेंगे!
कभी ऐसा भी होता है कि
शब्द खोने लगते हैं
और मन हो जाता है
क्षितिजहीन सपाट पठार;
मैं खोये को पाने को
अस्तित्त्वहीन क्षितिज से घिर जाने को
कुछ लिखता हूँ,
जो काव्य नहीं होता।
अपने क्षितिज से जोड़ उसे
न पूछो प्रश्न
न करो कोशिश
हरियाली की समस्यायें
रोपने को पठार पर।
उस कुछ में समाधान नहीं होता
उस कुछ से समाधान नहीं होता
वह बस खोये को पाने को है
वह क्षितिज तक जाने को है – बस!