‘कामसूत्र’ फिल्म में शुभा मुद्गल को सुनने के बाद आबिदा परवीन का गायन सुना।
… ओ ss मीयाँ sssss …
लगा जैसे आबिदा ‘ओम’ कह रही हों और शुभा का तानपुरे पर सधा गूँजता स्वर उसके आगे जोड़ रहा हो… ईयाँ ssss
ओ ss मीयाँ sssss …
गूँज ही थी … सोचा एक प्रयोग करके देखते हैं और … फिर दो अलग अलग वादकों पर दोनों एक साथ .. उल्लासमयी मत्त आबिदा परवीन और तानपुरे सी गूँज लिए गम्भीर शुभा मुद्गल… शमाँ बँधी पागल के खातिर …
कुछ थाह सी… नहीं आभास सा लगने लगा .. उसका जिसने सनातन धर्म और इस्लाम दोनों को सूफियाने की राह दिखाई होगी… और फिर स्वर गंगा यमुना के बीच सरस्वती का नृत्य…. बहता चला गया..
(दोनो चित्र इंटरनेट सम्बन्धित साइटों से साभार)
नाच रही तुम आओ
दुसह दिगम्बर रमे कलन्दर
आज बनी यह धरा सितमगर
फिर भी नाचूँ नामे तुम पर
आओ, मैं नाच रही तुम आओ ।
साँस भरी जो लुढ़की पथ पर
तुम्हरी लौ ना बुझती जल कर
लपलप हिलती दहके मन भर
अपनी हथेली लगाओ
नाच रही मैं, आओ।
कोरे नैना अबोलन बैना
डूबी सिसकी अँसुवन अँगना
सजी सोहागन बाँधे कँगना
नेह नज़र भर आओ
नाच रही मैं, आओ।
साँस भरी जोबन ज्यूँ अगनी
तरपत रूह कारिख भै सजनी
बरसो बदरा, भोगी हो अवनी
पूरन पूर समाओ
जगा हुआ स्वप्न सा देख रहा हूँ… शुभा और आबिदा एक अकिंचन की भाव सरिता पर स्वर नैया खे रही हैं ..ॐ … ओ ssss मीयाँ sssss ओम … ईयाँ sssss