Monthly Archives: मार्च 2010
रात साढ़े तीन बजे
आँख धसा व्याध तीर बजता रहा जो संगीत
आँख धसा व्याध तीर बजता रहा जो संगीत
(१)तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन,(२)भारतीय की जान की कीमत(३)बातचीत रहेगी जारी
आज प्रात: एक मेल मिला। ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ।
_______________________________________________
अच्छा!!! वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन – दोस्ती में – इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है – जरुर खोलेंगे एक और खिड़की – उसकी ख़ातिर
मगर – हम नाराज़ हैं – तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी तो बड़े जिद्दी हो – दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े – शर्म करो – तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है – इतने कम से भी – उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर – तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) – क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]
अच्छा! समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ – और यहीं बस जाते हैं
बेचारे – ये तो वहां का गुस्सा है – जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में – यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)
क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको – वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना – तो चल – अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ? सिर्फ २०० रुपये मासिक कर (*१)
हम क्या शोक करें – क्यों शोक करें अब – ऐसे वैसों की मौत पर ?
अच्छा! आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता – कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है – भारत सहिष्णु है – यह भूल मत – निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? – बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)
इन बेकार की बातों में – न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा – कुछ नहीं हुआ – जा काम पर जा – काम कर
तेरे गुस्से की तलवार को – हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान – ध्यान में रख
जानते हैं हम – इस बयान पर – वो ना देगा कान
चिंता ना कर – तैयार है – एक इस से भी कड़ा बयान
दे रक्खा है उसे – सबसे प्यारे देश का दरजा (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना – इस प्यार का करजा
दुनिया भर से – कर दी है शिकायत – कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले – तब तक तू यूँ ही मर जा
किस को पड़ी है कि – कौन मरा – और मार गया कौन
आराम से मर – तेरे लिए भी रख लेंगे – २ मिनट का मौन
*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा——————————
(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)
अरे
– समझौता गाड़ी की मौतों पर – क्या आंसू बहाना थाउनको तो – पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही – जाना था
मरने ही जा रहे थे – लाहौर, करांची – या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर – ये नेता – हमारा पैसा तो ना खर्च करते
और तुम – भारतियों, टट्पुंजियों – कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया – तो निकला तुम्हारा ख़ून – बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो – दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या – खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख – तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख
तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं – बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है – इसलिए – यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में – तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं
जाग जा – अब तो जाग जा ऐ भारत – अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें – और तू मर जाये – लगता ऐसा ये “समझौता” है
प्रियजनों की मौत पर – फूट फूट रोवोगे – वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है – ख़ून ना खौले जिस समाज का – वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे
पांच साल में – आधा घंटा तो – वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें – तो उसमे से – तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है – परायों को तू मात दे दे
बुद्धिमान है तू – अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को – वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज – समूल समाप्त कर
ऐ भारत – तू उठ खड़ा हो – निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
अपने भारतीय होने पर – दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर – कुछ तो कर – अरे अब तो कुछ कर
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
——————————
रचयिता : धर्मेश शर्मा
मुंबई / दिनांक २०.०९.२००९ संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
————————————————-रचनाकार अथवा संपादक नियमित लेखक, कवि अथवा ब्लागर नहीं हैं l एक आम आदमी की तरह, आम आदमियों के बीच घूमते हुए, आतंकवादी हमलों के बाद अपने प्रियजनों को खो कर ह्रदय विदारक क्रंदन करते हुए, लुटे हुए आम भारतीय की जो पीड़ा, विवशता, हताशा और छटपटाहट देखी है – वह महसूस तो की जा सकती – परन्तु शब्द – वाणी अथवा लेखनी द्वारा – उस दर्द का १/४ % या १/२ % भी आप तक संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l कहा गया है की “एक चित्र १००० शब्दों से अधिक कहता है” – परन्तु एक अनुभूति को तो सम्पूर्ण शब्दकोष भी संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l हर बार के आतंकी आक्रमण के बाद जिस तरह बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता मिल कर भारत की आक्रांत और पीड़ित जनता को बहलाने फुसलाने का काम करते हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ देखो कैसे भारत की जनता आक्रमण को भुला कर दूसरे ही दिन अपने अपने काम में व्यस्त हो गई है l खून तो तब खौलता है जब ये बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता लोग आक्रमणकारियों की पैरवी करने लगते है और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों पर आरोप लगाने का जघन्य और अक्षम्य अपराध करते हैं l
एक आम भारतीय की पीड़ा अपनी संवेदना में मिला कर आप तक पँहुचाने का प्रयास है l जब तक हम सब लोग आपसी क्षुद्र भेदभाव भुला कर अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के प्रति एकमत नहीं होंगे तब तक ऐसे ही आक्रमण होते रहेंगे और हम लोग ऐसे ही अरण्य-रोदन करते रहेंगे l
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है l प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे l यद्दपि किसी भी प्रकार का “Copy Right” नहीं है – सब कुछ “Copy Left” है; तदापि पाठकगण से नम्र निवेदन है कि अपने मित्रों को प्रसारित (फारवर्ड) करते समय अथवा अपने ब्लॉग पर डालते समय रचनाकार को एक ईमेल द्वारा सूचित कर के अथवा एक लिंक दे कर प्रोत्साहन दें l हमारा मानना है कि – Criticism is Catalyst to Creativity या फिर यूँ समझ लीजिये कि – निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय…… l आपकी सृजनात्मक आलोचना शिरोधार्य होगी – संकोच न करें l
देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी तो अवश्य प्रसारित करें अथवा – क्योंकि :
ई मेल : anandgsharma@gmail.com
(१)तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन,(२)भारतीय की जान की कीमत(३)बातचीत रहेगी जारी
आज प्रात: एक मेल मिला। ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ।
_______________________________________________
अच्छा!!! वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन – दोस्ती में – इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है – जरुर खोलेंगे एक और खिड़की – उसकी ख़ातिर
मगर – हम नाराज़ हैं – तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी तो बड़े जिद्दी हो – दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े – शर्म करो – तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है – इतने कम से भी – उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर – तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) – क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]
अच्छा! समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ – और यहीं बस जाते हैं
बेचारे – ये तो वहां का गुस्सा है – जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में – यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)
क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको – वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना – तो चल – अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ? सिर्फ २०० रुपये मासिक कर (*१)
हम क्या शोक करें – क्यों शोक करें अब – ऐसे वैसों की मौत पर ?
अच्छा! आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता – कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है – भारत सहिष्णु है – यह भूल मत – निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? – बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)
इन बेकार की बातों में – न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा – कुछ नहीं हुआ – जा काम पर जा – काम कर
तेरे गुस्से की तलवार को – हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान – ध्यान में रख
जानते हैं हम – इस बयान पर – वो ना देगा कान
चिंता ना कर – तैयार है – एक इस से भी कड़ा बयान
दे रक्खा है उसे – सबसे प्यारे देश का दरजा (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना – इस प्यार का करजा
दुनिया भर से – कर दी है शिकायत – कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले – तब तक तू यूँ ही मर जा
किस को पड़ी है कि – कौन मरा – और मार गया कौन
आराम से मर – तेरे लिए भी रख लेंगे – २ मिनट का मौन
*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा——————————
(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)
अरे
– समझौता गाड़ी की मौतों पर – क्या आंसू बहाना थाउनको तो – पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही – जाना था
मरने ही जा रहे थे – लाहौर, करांची – या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर – ये नेता – हमारा पैसा तो ना खर्च करते
और तुम – भारतियों, टट्पुंजियों – कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया – तो निकला तुम्हारा ख़ून – बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो – दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या – खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख – तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख
तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं – बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है – इसलिए – यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में – तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं
जाग जा – अब तो जाग जा ऐ भारत – अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें – और तू मर जाये – लगता ऐसा ये “समझौता” है
प्रियजनों की मौत पर – फूट फूट रोवोगे – वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है – ख़ून ना खौले जिस समाज का – वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे
पांच साल में – आधा घंटा तो – वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें – तो उसमे से – तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है – परायों को तू मात दे दे
बुद्धिमान है तू – अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को – वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज – समूल समाप्त कर
ऐ भारत – तू उठ खड़ा हो – निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
अपने भारतीय होने पर – दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर – कुछ तो कर – अरे अब तो कुछ कर
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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रचयिता : धर्मेश शर्मा
मुंबई / दिनांक २०.०९.२००९ संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
————————————————-रचनाकार अथवा संपादक नियमित लेखक, कवि अथवा ब्लागर नहीं हैं l एक आम आदमी की तरह, आम आदमियों के बीच घूमते हुए, आतंकवादी हमलों के बाद अपने प्रियजनों को खो कर ह्रदय विदारक क्रंदन करते हुए, लुटे हुए आम भारतीय की जो पीड़ा, विवशता, हताशा और छटपटाहट देखी है – वह महसूस तो की जा सकती – परन्तु शब्द – वाणी अथवा लेखनी द्वारा – उस दर्द का १/४ % या १/२ % भी आप तक संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l कहा गया है की “एक चित्र १००० शब्दों से अधिक कहता है” – परन्तु एक अनुभूति को तो सम्पूर्ण शब्दकोष भी संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l हर बार के आतंकी आक्रमण के बाद जिस तरह बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता मिल कर भारत की आक्रांत और पीड़ित जनता को बहलाने फुसलाने का काम करते हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ देखो कैसे भारत की जनता आक्रमण को भुला कर दूसरे ही दिन अपने अपने काम में व्यस्त हो गई है l खून तो तब खौलता है जब ये बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता लोग आक्रमणकारियों की पैरवी करने लगते है और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों पर आरोप लगाने का जघन्य और अक्षम्य अपराध करते हैं l
एक आम भारतीय की पीड़ा अपनी संवेदना में मिला कर आप तक पँहुचाने का प्रयास है l जब तक हम सब लोग आपसी क्षुद्र भेदभाव भुला कर अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के प्रति एकमत नहीं होंगे तब तक ऐसे ही आक्रमण होते रहेंगे और हम लोग ऐसे ही अरण्य-रोदन करते रहेंगे l
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है l प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे l यद्दपि किसी भी प्रकार का “Copy Right” नहीं है – सब कुछ “Copy Left” है; तदापि पाठकगण से नम्र निवेदन है कि अपने मित्रों को प्रसारित (फारवर्ड) करते समय अथवा अपने ब्लॉग पर डालते समय रचनाकार को एक ईमेल द्वारा सूचित कर के अथवा एक लिंक दे कर प्रोत्साहन दें l हमारा मानना है कि – Criticism is Catalyst to Creativity या फिर यूँ समझ लीजिये कि – निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय…… l आपकी सृजनात्मक आलोचना शिरोधार्य होगी – संकोच न करें l
देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी तो अवश्य प्रसारित करें अथवा – क्योंकि :
ई मेल : anandgsharma@gmail.com
डरो नहीं
मृत्यु के बाद भी।
बिछड़ने के बाद भी।
तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा –
मैं मैं न रहूँगा
वह वह न रहेगी।
..बहुत दिनों बाद जब याद करेंगे
प्रेम फैलेगा मुलायम चाँदनी बन
याद को आकार देते हुए –
डरो नहीं
मृत्यु के बाद भी।
बिछड़ने के बाद भी।
तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा –
मैं मैं न रहूँगा
वह वह न रहेगी।
..बहुत दिनों बाद जब याद करेंगे
प्रेम फैलेगा मुलायम चाँदनी बन
याद को आकार देते हुए –
पुरानी डायरी से – 18: अधूरी कविता
रजनी का पक्ष कृष्ण
बेला है भोर की ।
चंचल मन्द अनिल नहीं ऊष्ण
कमी है शोर की।
अपूर्ण चाँद ऐसा लगता
अन्धकार को दूर करने हेतु
जैसे जला दिया हो प्रकृति ने
एक शांत दिया।
श्वेत बादल ऐसे चलते
इस दीप के उपर से
जैसे हों इस दीप से निकले
पटलित धूम।
इक्के दुक्के तारे निकलते
इनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के।
पुरानी डायरी से – 18: अधूरी कविता
रजनी का पक्ष कृष्ण
बेला है भोर की ।
चंचल मन्द अनिल नहीं ऊष्ण
कमी है शोर की।
अपूर्ण चाँद ऐसा लगता
अन्धकार को दूर करने हेतु
जैसे जला दिया हो प्रकृति ने
एक शांत दिया।
श्वेत बादल ऐसे चलते
इस दीप के उपर से
जैसे हों इस दीप से निकले
पटलित धूम।
इक्के दुक्के तारे निकलते
इनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के।