रात साढ़े तीन बजे

(1)
नींद टूटती रह रह
स्वप्न माशुकाएँ
कर फुरफुरी कानों में
खिलखिलाएँ –
इतनी सारी !
(2)
शाम – प्रगल्भ वासना
निर्वसन – मुझे भोगो।
(3)
ईश्वर नाम सुमिरन –
छपते समाचार पत्र
लाखों रोज, रोज का टंटा
वही पुरानी मशीनें –
वही रोज कटते पेंड़।
(4)
सुराही हुई औंधी
तुम्हारी स्मृति
बहती – घुड़ घुड़ घुड़
घड़प !
(5)
माँ ने जलाया दीप
गाँव में शमीं तले
शाम ढले जवान बिटिया
निकली होगी दूर शहर में
प्रेमी से मिलने।
(6)
मन काठ का टुकड़ा
तलछट में  पड़ा।
उमड़ी जो भाव सलिल
उपरा ही गया ।
(7)
खिलखिला बतिया रही लड़कियाँ
चुप हुईं अचानक –
एक गोद में लिए
एक उंगली पकड़ाए
एक पेट में लिए
औरत दिखी
सड़क क्रॉस करते।
(8)  
देखो मेरी आँख में कैसी किरकिरी !
..तुम्हें कुछ न मिला  !!
मरे सपने यूँ ही किरकिराते हैं।
(9)
एसी चैम्बर में 31 मार्च क्लोजिंग . . . . 
छत पर बैठे कब के रिटायर्ड पिताजी 
और अम्माँ
उम्र का हिसाब कर रहे होंगे – 
शाम ढले बिन बिजली बिन पंखे।
————————————————————–
रात कुसमय ही नींद खुल गई। क्षणिकाएँ उसी समय की उपज हैं। 
……………………………………………………………………

रात साढ़े तीन बजे

(1)
नींद टूटती रह रह
स्वप्न माशुकाएँ
कर फुरफुरी कानों में
खिलखिलाएँ –
इतनी सारी !
(2)
शाम – प्रगल्भ वासना
निर्वसन – मुझे भोगो।
(3)
ईश्वर नाम सुमिरन –
छपते समाचार पत्र
लाखों रोज, रोज का टंटा
वही पुरानी मशीनें –
वही रोज कटते पेंड़।
(4)
सुराही हुई औंधी
तुम्हारी स्मृति
बहती – घुड़ घुड़ घुड़
घड़प !
(5)
माँ ने जलाया दीप
गाँव में शमीं तले
शाम ढले जवान बिटिया
निकली होगी दूर शहर में
प्रेमी से मिलने।
(6)
मन काठ का टुकड़ा
तलछट में  पड़ा।
उमड़ी जो भाव सलिल
उपरा ही गया ।
(7)
खिलखिला बतिया रही लड़कियाँ
चुप हुईं अचानक –
एक गोद में लिए
एक उंगली पकड़ाए
एक पेट में लिए
औरत दिखी
सड़क क्रॉस करते।
(8)  
देखो मेरी आँख में कैसी किरकिरी !
..तुम्हें कुछ न मिला  !!
मरे सपने यूँ ही किरकिराते हैं।
(9)
एसी चैम्बर में 31 मार्च क्लोजिंग . . . . 
छत पर बैठे कब के रिटायर्ड पिताजी 
और अम्माँ
उम्र का हिसाब कर रहे होंगे – 
शाम ढले बिन बिजली बिन पंखे।
————————————————————–
रात कुसमय ही नींद खुल गई। क्षणिकाएँ उसी समय की उपज हैं। 
……………………………………………………………………

आँख धसा व्याध तीर बजता रहा जो संगीत

vyaadhaMILKYWAY3 न प्रीत न गीत राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का कैसी यह धुन जो साथ गाई अब भी बजती शहनाई मैं संगत करता शबनम सा आकाश छोड़  हवा संग धरती पर सूख चले रवि संग पुन: नभ तक रहना गिरना उठना चलना राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का अवसाद ढले शाम चले दीप जलें टुकुर टुकुर नेह नीर बन जाँय जुगनू पलक झपकें धूल धूसरित बूँदे गिर बुझ टपक पड़े रात मन काट काट सहस मसक बजता रहा संगीत तुमसे बिछुड़न का आसमान भटक रहे कितने ही रोगी सब ठहर गए ठाँव ठाँव जो आँख धसा व्याध तीर नभ सरि नींद चीखती गई भाग पूरब संग रँग गई लाल चुरा ललाई नयनों से सो न सका बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का।
Sands0861

आँख धसा व्याध तीर बजता रहा जो संगीत

vyaadhaMILKYWAY3 न प्रीत न गीत राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का कैसी यह धुन जो साथ गाई अब भी बजती शहनाई मैं संगत करता शबनम सा आकाश छोड़  हवा संग धरती पर सूख चले रवि संग पुन: नभ तक रहना गिरना उठना चलना राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का अवसाद ढले शाम चले दीप जलें टुकुर टुकुर नेह नीर बन जाँय जुगनू पलक झपकें धूल धूसरित बूँदे गिर बुझ टपक पड़े रात मन काट काट सहस मसक बजता रहा संगीत तुमसे बिछुड़न का आसमान भटक रहे कितने ही रोगी सब ठहर गए ठाँव ठाँव जो आँख धसा व्याध तीर नभ सरि नींद चीखती गई भाग पूरब संग रँग गई लाल चुरा ललाई नयनों से सो न सका बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का।
Sands0861

(१)तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन,(२)भारतीय की जान की कीमत(३)बातचीत रहेगी जारी

आज प्रात: एक मेल मिला। ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ।
_______________________________________________

तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन (अभागे भारतीय की फरियाद पर सिक-यू-लायर(Sick you Liar, बीमार मानसिकता वाले  झुट्ठे) नेता द्वारा सांत्वना भरे कुटिल उपदेश की तरह पढ़ें)—————————————————–
अच्छा!!!   वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन – दोस्ती में – इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है – जरुर खोलेंगे एक और खिड़की – उसकी ख़ातिर
मगर – हम नाराज़ हैं – तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है

तुम भी तो बड़े जिद्दी हो –  दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े – शर्म करो – तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है – इतने कम से भी – उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर – तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) – क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]

अच्छा!   समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ – और यहीं बस जाते हैं
बेचारे – ये तो वहां का गुस्सा है – जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में – यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)

क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको – वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना – तो चल – अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ?  सिर्फ २०० रुपये मासिक कर  (*१)
हम क्या शोक करें – क्यों शोक करें अब – ऐसे वैसों की मौत पर ?

अच्छा!  आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता – कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है – भारत सहिष्णु है – यह भूल मत – निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? – बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)

इन बेकार की बातों में – न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा – कुछ नहीं हुआ – जा काम पर जा – काम कर

तेरे गुस्से की तलवार को – हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान – ध्यान में रख
जानते हैं हम – इस बयान पर – वो ना देगा कान
चिंता ना कर – तैयार है – एक इस से भी कड़ा बयान

दे रक्खा है उसे – सबसे प्यारे देश का दरजा  (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना – इस प्यार का करजा
दुनिया भर से – कर दी है शिकायत – कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले – तब तक तू यूँ ही मर जा

किस को पड़ी है कि – कौन मरा – और मार गया कौन
आराम से मर – तेरे लिए भी रख लेंगे – २ मिनट का मौन

*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा——————————

भारतीय की जान की कीमत 
(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)

अरे – समझौता गाड़ी की मौतों पर – क्या आंसू बहाना था 
उनको तो – पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही – जाना था
 
मरने ही जा रहे थे – लाहौर, करांची – या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर – ये नेता – हमारा पैसा तो ना खर्च करते

और तुम – भारतियों, टट्पुंजियों – कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी 
जब हिसाब किया – तो निकला तुम्हारा ख़ून – बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो – दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या – खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख – तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख

तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन,  ही अच्छे 
देखो कैसे बन बैठे हैं – बिके हुए सिक यू लायर मीडिया  के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है – इसलिए – यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में – तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं

जाग जा – अब तो जाग जा ऐ भारत – अब ऐसे क्यूँ सोता है 
वो मार दें – और तू मर जाये – लगता ऐसा ये “समझौता” है
प्रियजनों की मौत पर – फूट फूट रोवोगे – वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है –  ख़ून ना खौले जिस समाज का – वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे

पांच साल में – आधा घंटा तो – वोट के लिए निकाला कर 
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें – तो उसमे से – तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है – परायों को तू मात दे दे

बुद्धिमान है तू – अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर 
वोट दे कर अपनों को – वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज – समूल समाप्त कर
ऐ भारत – तू उठ खड़ा हो – निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
 
अपने भारतीय होने पर – दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर – कुछ तो कर – अरे अब तो कुछ कर

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
————————————————-

बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी 

चाहे हम हों कितने तगड़े , मुंह वो हमारा धूल में रगड़े,
पटक पटक के हमको मारे , फाड़ दिए हैं कपड़े सारे ,
माना की वो नीच बहुत है , माना वो है अत्याचारी ,
लेकिन – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

जब भी उसके मन में आये , जबरन वो घर में घुस जाए ,
बहू बेटियों की इज्ज़त लूटे, बच्चों को भी मार के जाए ,
कोई न मौका उसने छोड़ा , चांस मिला तब लाज उतारी ,
लेकिन – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

हम में से ही हैं  कुछ पापी , जिनका लगता है वो बाप ,
आग लगाते  हुए वे जल मरें , तो भी उसपर हमें ही पश्चाताप ?
दुश्मन का बुरा सोचा कैसे ???  हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी ???
अब तो – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

बम यहाँ पे फोड़ा , वहां पे फोड़ा , किसी जगह को नहीं है छोड़ा ,
मरे हजारों, अनाथ लाखों में , लेकिन गौरमेंट को लगता थोडा ,
मर मरा गए तो फर्क पड़ा क्या ? आखिर है ही क्या औकात तुम्हारी ???
इसलिए – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

लानत है ऐसे सालों पर , जूते खाते रहते हैं दोनों गालों पर ,
कुछ देर बाद , कुछ देर बाद , रहे टालते बासठ सालों भर ,
गौरमेंट  करती रहती है  नाटक , जग में कोई नहीं हिमायत ,
पर कौन सुने ऐसे हाथी की , जो कोकरोच की करे शिकायत ???
इलाज पता बच्चे बच्चे  को , पर बहुत बड़ी मजबूरी है सरकारी ,
इसीलिये  – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

वैसे हैं बहुत होशियार हम , कर भी रक्खी सेना  तैयार है ,
सेना गयी मोर्चे पर तो  – इन भ्रष्ट नेताओं का कौन चौकीदार है ???
बंदूकों की बना के सब्जी , बमों का डालना अचार है ,
मातम तो पब्लिक के  घर है , पर गौरमेंट का डेली त्योंहार है 
ऐसे में वो युद्ध छेड़ कर , क्यों उजाड़े खुद की दुकानदारी ???
इसीलिये – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी . 

सपूत हिंद के बहुत जियाले , जो घूरे उसकी आँख निकालें ,
राम कृष्ण के हम वंशज हैं , जिससे चाहें पानी भरवालें ,
जब तक धर्म के साथ रहे हम , राज किया विश्व पर हमने ,
कुछ पापी की बातों में आ कर , भूले स्वधर्म तो सब से हारे ,
जाग गए अब, हुए सावधान हम , ना चलने देंगे  इनकी मक्कारी ,
पर तब तक –  बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     


रचयिता : धर्मेश शर्मा
मुंबई / दिनांक २०.०९.२००९ 
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
——————————
——————-रचनाकार अथवा संपादक नियमित लेखक, कवि अथवा ब्लागर नहीं हैं l  एक आम आदमी की तरह, आम आदमियों के बीच घूमते हुए, आतंकवादी हमलों के बाद अपने प्रियजनों को खो कर ह्रदय विदारक क्रंदन करते हुए, लुटे हुए  आम भारतीय की जो पीड़ा, विवशता, हताशा और छटपटाहट देखी है – वह महसूस तो की जा सकती – परन्तु शब्द – वाणी अथवा लेखनी द्वारा – उस दर्द का १/४ % या १/२ %  भी आप तक संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l  कहा गया है की “एक चित्र १००० शब्दों से अधिक कहता है” – परन्तु एक अनुभूति को तो सम्पूर्ण शब्दकोष भी संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l हर बार के आतंकी आक्रमण के बाद जिस तरह बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता मिल कर भारत की आक्रांत और पीड़ित जनता को बहलाने फुसलाने का काम करते हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ देखो कैसे भारत की जनता आक्रमण को भुला कर दूसरे ही दिन अपने अपने काम में व्यस्त हो गई है l  खून तो तब खौलता है जब ये बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता लोग आक्रमणकारियों की  पैरवी करने लगते है  और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों पर आरोप लगाने का जघन्य और अक्षम्य अपराध करते हैं l

एक आम भारतीय की पीड़ा अपनी संवेदना में मिला कर आप तक पँहुचाने का प्रयास है l जब तक हम सब लोग आपसी क्षुद्र भेदभाव भुला कर अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के प्रति एकमत नहीं होंगे तब तक ऐसे ही आक्रमण होते रहेंगे और हम लोग ऐसे ही अरण्य-रोदन करते रहेंगे l
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है l प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे l यद्दपि किसी भी प्रकार का “Copy Right” नहीं है – सब कुछ “Copy Left” है;  तदापि पाठकगण से नम्र निवेदन है कि अपने मित्रों को प्रसारित (फारवर्ड) करते समय अथवा अपने ब्लॉग पर डालते समय रचनाकार को एक ईमेल द्वारा सूचित कर के अथवा एक लिंक दे कर  प्रोत्साहन दें l हमारा मानना है कि – Criticism is Catalyst to Creativity या फिर यूँ समझ लीजिये कि – निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय…… l  आपकी  सृजनात्मक आलोचना शिरोधार्य होगी – संकोच न करें l
देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी तो अवश्य प्रसारित करें अथवा – क्योंकि :

भारत के लोगों में देशभक्ति अक्षरशः “मरघटिया वैराग्य” जैसी है l ज्यों ही भारत पर आक्रमण होता है – जैसा की पिछले २००० वर्षों से होता आ रहा है (कोई नई बात नहीं है – आक्रमण न होना नई बात होगी), लोगों  की देशभक्ति उनींदी सी आँखों से जागती हुई प्रतीत होती है – केवल प्रतीत होती है – जागती नहीं है – बस मिचमिचाई हुई आँखों से देख – थोड़ा बड़बड़ा कर फिर सो जाती है – अगले आक्रमण होने तक l  मैं तो कहता हूँ कि  “मरघटिया वैराग्य” भी बहुत लम्बा समय है – यूँ कहना चाहिए कि सोडा वाटर की बोतल खोलने पर बुलबुलों के जोश जितना या फिर मकई के दाने के गर्म होने पर आवाज कर के फटना और पोपकोर्न बनने की अवधि तक– बस इतना ही – इस से अधिक नहीं l   पता नहीं कितने महान लोग भारत को जगाने का असफल प्रयत्न कर कर के मर गए परन्तु पूरे विश्व में केवल भारत के ही लोग हैं जो ठान रक्खें हैं कि हम नहीं जागेंगे l  जो जाग जाते हैं उनके साथ ये तकलीफ़ है कि वे दूसरों को जगाने का मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं – भूल जाते हैं कि उनके पहले भी उनसे लाख गुणा महान आत्माएं सिर पटक के थक गए – परन्तु भारत के लोग नहीं जगे l  हम आप जैसे कुछ “मूर्ख” लोग भी भारत को जगाने के प्रयास में सहयोग कर रहें है – संभवतः किसी दिन भारत की अंतरात्मा जाग जाये l  चर्मचक्षु  खुलने से जागना नहीं होता है – ज्ञानचक्षु खुलने की नितांत आवश्यकता है – Sooner the Better.
जिस प्रकार हम प्रतिदिन शौचकर्म करते हैं, स्नानादि करते हैं, भोजन करते हैं – यह नहीं कहते कि कल तो किया था फिर आज भी क्यों करें – ठीक उसी प्रकार भारत के लोगों की मूर्छित अंतरात्मा को जगाने के लिए प्रत्येक जागरूक देशभक्त भारतीय को प्रतिदिन प्रयत्न करना है l मैं “चाहिए” शब्द के प्रयोग से बचता हूँ l  हमें प्रयत्न करना “चाहिए” नहीं –  हमें प्रयत्न करना है – और करते रहना है l


आनंद जी. शर्मा 
मुंबई / दिनांक : १६.०३.२०१०

ई मेल : anandgsharma@gmail.com

(१)तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन,(२)भारतीय की जान की कीमत(३)बातचीत रहेगी जारी

आज प्रात: एक मेल मिला। ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ।
_______________________________________________

तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन (अभागे भारतीय की फरियाद पर सिक-यू-लायर(Sick you Liar, बीमार मानसिकता वाले  झुट्ठे) नेता द्वारा सांत्वना भरे कुटिल उपदेश की तरह पढ़ें)—————————————————–
अच्छा!!!   वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन – दोस्ती में – इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है – जरुर खोलेंगे एक और खिड़की – उसकी ख़ातिर
मगर – हम नाराज़ हैं – तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है

तुम भी तो बड़े जिद्दी हो –  दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े – शर्म करो – तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है – इतने कम से भी – उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर – तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) – क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]

अच्छा!   समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ – और यहीं बस जाते हैं
बेचारे – ये तो वहां का गुस्सा है – जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में – यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)

क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको – वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना – तो चल – अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ?  सिर्फ २०० रुपये मासिक कर  (*१)
हम क्या शोक करें – क्यों शोक करें अब – ऐसे वैसों की मौत पर ?

अच्छा!  आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता – कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है – भारत सहिष्णु है – यह भूल मत – निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? – बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)

इन बेकार की बातों में – न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा – कुछ नहीं हुआ – जा काम पर जा – काम कर

तेरे गुस्से की तलवार को – हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान – ध्यान में रख
जानते हैं हम – इस बयान पर – वो ना देगा कान
चिंता ना कर – तैयार है – एक इस से भी कड़ा बयान

दे रक्खा है उसे – सबसे प्यारे देश का दरजा  (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना – इस प्यार का करजा
दुनिया भर से – कर दी है शिकायत – कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले – तब तक तू यूँ ही मर जा

किस को पड़ी है कि – कौन मरा – और मार गया कौन
आराम से मर – तेरे लिए भी रख लेंगे – २ मिनट का मौन

*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा——————————

भारतीय की जान की कीमत 
(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)

अरे – समझौता गाड़ी की मौतों पर – क्या आंसू बहाना था 
उनको तो – पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही – जाना था
 
मरने ही जा रहे थे – लाहौर, करांची – या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर – ये नेता – हमारा पैसा तो ना खर्च करते

और तुम – भारतियों, टट्पुंजियों – कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी 
जब हिसाब किया – तो निकला तुम्हारा ख़ून – बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो – दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या – खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख – तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख

तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन,  ही अच्छे 
देखो कैसे बन बैठे हैं – बिके हुए सिक यू लायर मीडिया  के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है – इसलिए – यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में – तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं

जाग जा – अब तो जाग जा ऐ भारत – अब ऐसे क्यूँ सोता है 
वो मार दें – और तू मर जाये – लगता ऐसा ये “समझौता” है
प्रियजनों की मौत पर – फूट फूट रोवोगे – वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है –  ख़ून ना खौले जिस समाज का – वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे

पांच साल में – आधा घंटा तो – वोट के लिए निकाला कर 
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें – तो उसमे से – तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है – परायों को तू मात दे दे

बुद्धिमान है तू – अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर 
वोट दे कर अपनों को – वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज – समूल समाप्त कर
ऐ भारत – तू उठ खड़ा हो – निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
 
अपने भारतीय होने पर – दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर – कुछ तो कर – अरे अब तो कुछ कर

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
————————————————-

बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी 

चाहे हम हों कितने तगड़े , मुंह वो हमारा धूल में रगड़े,
पटक पटक के हमको मारे , फाड़ दिए हैं कपड़े सारे ,
माना की वो नीच बहुत है , माना वो है अत्याचारी ,
लेकिन – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

जब भी उसके मन में आये , जबरन वो घर में घुस जाए ,
बहू बेटियों की इज्ज़त लूटे, बच्चों को भी मार के जाए ,
कोई न मौका उसने छोड़ा , चांस मिला तब लाज उतारी ,
लेकिन – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

हम में से ही हैं  कुछ पापी , जिनका लगता है वो बाप ,
आग लगाते  हुए वे जल मरें , तो भी उसपर हमें ही पश्चाताप ?
दुश्मन का बुरा सोचा कैसे ???  हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी ???
अब तो – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

बम यहाँ पे फोड़ा , वहां पे फोड़ा , किसी जगह को नहीं है छोड़ा ,
मरे हजारों, अनाथ लाखों में , लेकिन गौरमेंट को लगता थोडा ,
मर मरा गए तो फर्क पड़ा क्या ? आखिर है ही क्या औकात तुम्हारी ???
इसलिए – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

लानत है ऐसे सालों पर , जूते खाते रहते हैं दोनों गालों पर ,
कुछ देर बाद , कुछ देर बाद , रहे टालते बासठ सालों भर ,
गौरमेंट  करती रहती है  नाटक , जग में कोई नहीं हिमायत ,
पर कौन सुने ऐसे हाथी की , जो कोकरोच की करे शिकायत ???
इलाज पता बच्चे बच्चे  को , पर बहुत बड़ी मजबूरी है सरकारी ,
इसीलिये  – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

वैसे हैं बहुत होशियार हम , कर भी रक्खी सेना  तैयार है ,
सेना गयी मोर्चे पर तो  – इन भ्रष्ट नेताओं का कौन चौकीदार है ???
बंदूकों की बना के सब्जी , बमों का डालना अचार है ,
मातम तो पब्लिक के  घर है , पर गौरमेंट का डेली त्योंहार है 
ऐसे में वो युद्ध छेड़ कर , क्यों उजाड़े खुद की दुकानदारी ???
इसीलिये – बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी . 

सपूत हिंद के बहुत जियाले , जो घूरे उसकी आँख निकालें ,
राम कृष्ण के हम वंशज हैं , जिससे चाहें पानी भरवालें ,
जब तक धर्म के साथ रहे हम , राज किया विश्व पर हमने ,
कुछ पापी की बातों में आ कर , भूले स्वधर्म तो सब से हारे ,
जाग गए अब, हुए सावधान हम , ना चलने देंगे  इनकी मक्कारी ,
पर तब तक –  बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     


रचयिता : धर्मेश शर्मा
मुंबई / दिनांक २०.०९.२००९ 
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
——————————
——————-रचनाकार अथवा संपादक नियमित लेखक, कवि अथवा ब्लागर नहीं हैं l  एक आम आदमी की तरह, आम आदमियों के बीच घूमते हुए, आतंकवादी हमलों के बाद अपने प्रियजनों को खो कर ह्रदय विदारक क्रंदन करते हुए, लुटे हुए  आम भारतीय की जो पीड़ा, विवशता, हताशा और छटपटाहट देखी है – वह महसूस तो की जा सकती – परन्तु शब्द – वाणी अथवा लेखनी द्वारा – उस दर्द का १/४ % या १/२ %  भी आप तक संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l  कहा गया है की “एक चित्र १००० शब्दों से अधिक कहता है” – परन्तु एक अनुभूति को तो सम्पूर्ण शब्दकोष भी संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l हर बार के आतंकी आक्रमण के बाद जिस तरह बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता मिल कर भारत की आक्रांत और पीड़ित जनता को बहलाने फुसलाने का काम करते हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ देखो कैसे भारत की जनता आक्रमण को भुला कर दूसरे ही दिन अपने अपने काम में व्यस्त हो गई है l  खून तो तब खौलता है जब ये बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता लोग आक्रमणकारियों की  पैरवी करने लगते है  और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों पर आरोप लगाने का जघन्य और अक्षम्य अपराध करते हैं l

एक आम भारतीय की पीड़ा अपनी संवेदना में मिला कर आप तक पँहुचाने का प्रयास है l जब तक हम सब लोग आपसी क्षुद्र भेदभाव भुला कर अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के प्रति एकमत नहीं होंगे तब तक ऐसे ही आक्रमण होते रहेंगे और हम लोग ऐसे ही अरण्य-रोदन करते रहेंगे l
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है l प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे l यद्दपि किसी भी प्रकार का “Copy Right” नहीं है – सब कुछ “Copy Left” है;  तदापि पाठकगण से नम्र निवेदन है कि अपने मित्रों को प्रसारित (फारवर्ड) करते समय अथवा अपने ब्लॉग पर डालते समय रचनाकार को एक ईमेल द्वारा सूचित कर के अथवा एक लिंक दे कर  प्रोत्साहन दें l हमारा मानना है कि – Criticism is Catalyst to Creativity या फिर यूँ समझ लीजिये कि – निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय…… l  आपकी  सृजनात्मक आलोचना शिरोधार्य होगी – संकोच न करें l
देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी तो अवश्य प्रसारित करें अथवा – क्योंकि :

भारत के लोगों में देशभक्ति अक्षरशः “मरघटिया वैराग्य” जैसी है l ज्यों ही भारत पर आक्रमण होता है – जैसा की पिछले २००० वर्षों से होता आ रहा है (कोई नई बात नहीं है – आक्रमण न होना नई बात होगी), लोगों  की देशभक्ति उनींदी सी आँखों से जागती हुई प्रतीत होती है – केवल प्रतीत होती है – जागती नहीं है – बस मिचमिचाई हुई आँखों से देख – थोड़ा बड़बड़ा कर फिर सो जाती है – अगले आक्रमण होने तक l  मैं तो कहता हूँ कि  “मरघटिया वैराग्य” भी बहुत लम्बा समय है – यूँ कहना चाहिए कि सोडा वाटर की बोतल खोलने पर बुलबुलों के जोश जितना या फिर मकई के दाने के गर्म होने पर आवाज कर के फटना और पोपकोर्न बनने की अवधि तक– बस इतना ही – इस से अधिक नहीं l   पता नहीं कितने महान लोग भारत को जगाने का असफल प्रयत्न कर कर के मर गए परन्तु पूरे विश्व में केवल भारत के ही लोग हैं जो ठान रक्खें हैं कि हम नहीं जागेंगे l  जो जाग जाते हैं उनके साथ ये तकलीफ़ है कि वे दूसरों को जगाने का मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं – भूल जाते हैं कि उनके पहले भी उनसे लाख गुणा महान आत्माएं सिर पटक के थक गए – परन्तु भारत के लोग नहीं जगे l  हम आप जैसे कुछ “मूर्ख” लोग भी भारत को जगाने के प्रयास में सहयोग कर रहें है – संभवतः किसी दिन भारत की अंतरात्मा जाग जाये l  चर्मचक्षु  खुलने से जागना नहीं होता है – ज्ञानचक्षु खुलने की नितांत आवश्यकता है – Sooner the Better.
जिस प्रकार हम प्रतिदिन शौचकर्म करते हैं, स्नानादि करते हैं, भोजन करते हैं – यह नहीं कहते कि कल तो किया था फिर आज भी क्यों करें – ठीक उसी प्रकार भारत के लोगों की मूर्छित अंतरात्मा को जगाने के लिए प्रत्येक जागरूक देशभक्त भारतीय को प्रतिदिन प्रयत्न करना है l मैं “चाहिए” शब्द के प्रयोग से बचता हूँ l  हमें प्रयत्न करना “चाहिए” नहीं –  हमें प्रयत्न करना है – और करते रहना है l


आनंद जी. शर्मा 
मुंबई / दिनांक : १६.०३.२०१०

ई मेल : anandgsharma@gmail.com

डरो नहीं

डरो नहीं – प्रेम जीवित रहेगा।
मृत्यु के बाद भी।
बिछड़ने के बाद भी।
तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा –

मैं मैं न रहूँगा
वह वह न रहेगी।
..बहुत दिनों बाद जब याद करेंगे
प्रेम फैलेगा मुलायम चाँदनी बन
याद को आकार देते हुए –

अँधेरे में आकार कहाँ होते हैं?
अँधेरे में डर लगता है । 
चाँदनी ! 

डरो नहीं

डरो नहीं – प्रेम जीवित रहेगा।
मृत्यु के बाद भी।
बिछड़ने के बाद भी।
तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा –

मैं मैं न रहूँगा
वह वह न रहेगी।
..बहुत दिनों बाद जब याद करेंगे
प्रेम फैलेगा मुलायम चाँदनी बन
याद को आकार देते हुए –

अँधेरे में आकार कहाँ होते हैं?
अँधेरे में डर लगता है । 
चाँदनी ! 

पुरानी डायरी से – 18: अधूरी कविता

रजनी का पक्ष कृष्ण
बेला है भोर की ।
चंचल मन्द अनिल नहीं ऊष्ण
कमी है शोर की।


अपूर्ण चाँद ऐसा लगता
अन्धकार को दूर करने हेतु
जैसे जला दिया हो प्रकृति ने
एक शांत दिया।


श्वेत बादल ऐसे चलते
इस दीप के उपर से
जैसे हों इस दीप से निकले
पटलित धूम।


इक्के दुक्के तारे निकलते
इनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के।

पुरानी डायरी से – 18: अधूरी कविता

रजनी का पक्ष कृष्ण
बेला है भोर की ।
चंचल मन्द अनिल नहीं ऊष्ण
कमी है शोर की।


अपूर्ण चाँद ऐसा लगता
अन्धकार को दूर करने हेतु
जैसे जला दिया हो प्रकृति ने
एक शांत दिया।


श्वेत बादल ऐसे चलते
इस दीप के उपर से
जैसे हों इस दीप से निकले
पटलित धूम।


इक्के दुक्के तारे निकलते
इनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के।