हल्दी दूध

भूमा सी आदिम गन्ध

फूली पुरइन  सा तुम्हारा प्यार।

सोंधी रसोई छौंका बघार

मौन विस्तार।

हर बार कविता मौन हुई

गर्भगृह में स्तवन को।

हाँ,

तुम्हारा प्यार है

प्रात के छोटे गिलास भर

हल्दी दूध सा

जिसमें

गन्ध है,

द्रव है,

ऊष्मा है

स्वास्थ्य है,

विस्तार है,

मौन है।

आगे

उपमायें पस्त हैं

रूपक ध्वस्त हैं।

(कितना हँसोगी, जब पढ़ोगी इसे!

और फिर् मुँह फुला कहोगी

घरवाली के लिये हल्दी दूध

और

दुनिया भर के लिये

चाँद, तारे, भोर, ऊषा, ओस!!

क्यों बना रहे हो?)

संस्कृत हिन्दी ‘दो सखुने’

ग्रियर्सन ने Indian Antiquary में संस्कृत हिन्दी ‘दो सखुनों’ का संकलन किया है। ऐसी रचनायें जिनमें दो भाषाओं का मिश्रण हो और मनोरंजनार्थ हल्के फुल्के ढंग से कही जायँ, उन्हें अंग्रेजी में Macaronic Verse कहा जाता है। पटना के किसी गुमानी कवि द्वारा ये रचनायें संग्रहित हुईं:

पूर्वमसुप्यत येन खट्वया हाटक मय्या, 
तेन नलेन प्राप्ता वने क्वा यदि तृणशय्या
वक्ति गुमानिर्देव शक्तिरिह नूमम असह्या
जिस विधि राखे राम उसी विधि रहना भइया।

प्रज्ञानंतो वैर्यवंतो वनेषु 
चेरु पार्था: दुखिता दीर्घकालं 
चक्रे राज्यं धार्तराष्ट्रा: कुबुद्धि: 
जग में सारी बात है बन पड़े की। 

प्रिया लोकनाथस्य लंकेश्वरस्य
प्रसूमेघनादस्य कन्यामयस्य
रतादेवरं हंत मन्दोदरी सा
भई रांड़ नारी गई लाज सारी।

तीनों में प्रथम तीन पंक्तियाँ संस्कृत में हैं और अंतिम पंक्तियाँ हिन्दी में हैं जिनमें लोक मान्यता, पर्यवेक्षण और पूर्वग्रह के दर्शन होते हैं।