भूमा सी आदिम गन्ध
फूली पुरइन सा तुम्हारा प्यार।
सोंधी रसोई छौंका बघार
मौन विस्तार।
हर बार कविता मौन हुई
गर्भगृह में स्तवन को।
हाँ,
तुम्हारा प्यार है
प्रात के छोटे गिलास भर
हल्दी दूध सा
जिसमें
गन्ध है,
द्रव है,
ऊष्मा है
स्वास्थ्य है,
विस्तार है,
मौन है।
आगे
उपमायें पस्त हैं
रूपक ध्वस्त हैं।
(कितना हँसोगी, जब पढ़ोगी इसे!
और फिर् मुँह फुला कहोगी
घरवाली के लिये हल्दी दूध
और
दुनिया भर के लिये
चाँद, तारे, भोर, ऊषा, ओस!!
क्यों बना रहे हो?)