टूटें छन्द बन्ध
मुक्त भाव
अक्षर सम्बन्ध
बस निबह जाय।
बात हो जाय
कह लें सुन लें
और मन बह ले।
…
व्याकरण पहेरू
बाहर ही ठीक।
घरनी कविता
डपट दे पहेरू को
इतनी तेजस्विनी
मानवती तो हो !
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छ्न्द मानव जाति के जीवन से ही आते हैं। मुझे सॉनेट लिखने को कहो तो बगले झाँकने लगूँ, दोहा या घनाक्षरी कहो तो शायद कर जाऊँ। बहुतेरे ऐसे हैं कि वह भी न कर पाएँ लेकिन मन की बात कह सकें और आप को द्रवित कर सकें, सोचने पर मजबूर कर सकें या नाचने, वाह वाह करने को उकसा सकें तो कवि हैं …
ग़जल मुझे नहीं आती। कोई छन्द नहीं आते। मैं लय को थोड़ा समझता हूँ। बस। अब आप व्याकरण सम्मत रचना चाहते हैं तो पहेरू का गुलाम बनना पड़ेगा। अब आप के उपर है – स्वामी रहना चाहते हैं, कविता को स्वामिनी बनाना चाहते हैं कि पहेरू के हाथ घर की चाभी देना चाहते हैं ! ..
मुक्त रचिए – गजलगोई का शौक है तो उसकी लय में रचिए। बस लय पर दृष्टि रखिए, जिस दिन सध गई उस दिन बल्ले बल्ले… आहा चिकनाक चिकनाक… लोग झूमेंगे नाचेंगे और रोएँगे सोचेंगे.. कोई यह पूछने नहीं आएगा कि बहर किस शहर गया या इसमें का मतला ठिगना है..