तुम्हारा घमण्ड आत्मविश्वास है
हमरा विश्वास भी दम्भ है।
तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
तुम लिक्खो तो नए प्रतिमान हैं
हम जो रचे तो लन्द फन्द है।
मिठाई हमरी माछी भरी सूगर की बिमारी
तुम्हरी सीसे में सजी कलाकन्द है।
एक्के जगह बँधा रच्छासूत
हमरा चिरकुट तुम्हरा कंगन बाजूबन्द है।
दम्भ
मूसर चन्द
लन्द फन्द
कलाकन्द
कंगन बाजूबन्द
तुकबन्दी में है लेकिन
ऍब्सर्ड सा समुच्चय है न ?
…
…
समझो
ये आदत छोड़ दो न !
Monthly Archives: नवम्बर 2009
तन धन …अकिञ्चन
यौवन
तन धन
सजे
सन सन।
शोर शोख
बरजोर बार,
बार लेकिन
कानों में कन कन
तन धन
बजे घन घन।
आँख डोर
बहकन
मन पतंग
तड़पन।
उठन शहर भर
नीक लगत
हवा पर
विचरण
लहकन
तन धन
बिखर छम थम।
लुनाई –
साँवरा बदन
कपोल लाल
अधपके जामुन
रस टपकन
अधर मधुर
मधु भर भर
कान लोर
लाल
शरम रम रम
तन धन
सिमट
कहर बन शबनम।
देह
द्वै कुम्भ काम
दृग विचरें
सप्तधाम
कटि कुलीन
नितम्ब पीन
उतरे क्षीण
जैसे
पश्चात मिलन
पतली पीर
सिमटन
तन धन
…
…
धत्त अकिंचन !
नरक के रस्ते – 5
निवेदन और नरक के रस्ते – 1
नरक के रस्ते – 2
नरक के रस्ते – 3
नरक के रस्ते – 4 से जारी….
पाठक मेरे !
पाठक मेरे!
हाँ मैंने पढ़ी है तुम्हारी हर टिप्पणी
अक्षर, अक्षर , मात्रा , मात्रा
मैंने उनमें लय ढूढ़ने के जतन किए हैं
अपने लिए सम्मान प्यार तिरस्कार सब ढूढ़ा है
पाया है।
वह बेचैनी भी ढूढ़ी है –
काश ! थोड़ा ऐसे लिख दिया होता
क्या बात होती !
कम्बख्त ने कबाड़ा कर दिया।
मैंने पाया है कई बार
स्तब्ध मौन – जब तुम बिना कुछ कहे चले गए।
वह स्पष्ट निन्दा बघार
मेरे स्वर व्यंजन – व्यंजन स्वाद।
सब सवादा है।….
पाठक मेरे !
मैं मानता हूँ
तुम भी पढ़ते होगे मुझे इसी तरह।
नरक के रस्ते – 4
नरक के रस्ते – 2, नरक के रस्ते – 3 से जारी..
नरक के रस्ते – 3
तुकबन्दी करना डेंजर काम है। (जारी)
हमहूँ मुक्तिबोध
हमने कहा छोड़ आगे बढ़
अगर ये सच है कि मुक्तिबोध के बाद
बोधुआ रे!
हमने पकड़ा उसका हाथ
विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह से करते हैं संगर,
मानो कि ज्वाला–पँखरियों से घिरे हुए वे सब
अग्नि के शत–दल–कोष में बैठे !!
द्रुत–वेग बहती हैं शक्तियाँ निश्चयी।“