अरमान Posted on नवम्बर 5, 2009 by Girijesh Rao हमने जो पूछा उनका हाल देखा किए वे कहर का सामानगुम थे सुम थेलौट आए हम।..फिर सुलगते रह गए अरमान। इसे शेयर करे:TwitterFacebookपसंद करें लोड हो रहा है... Related
गिरिजेश जी मेरे ब्लॉग पर आने और सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपने चंद लाइनों जो कुछ कह दिया है अद्वितीय हैआभार रचना दीक्षित Reply ↓
सही है जब अरमान सुलगते है तो धुआ भी नही उठता………बस दिल की लगी होती है ……..पर कबतक? मुझे नही पता! Reply ↓
गुम के साथ साथ सुम होना भी अच्छा लगा ! …………………………….और अरमान तो सुलगते ही रह जाय तो ही अच्छा है ! Reply ↓
गुम के साथ ….साथ सुम होना?ऐसा लिखना -अनूठा ख्याल लगा !अरमानो में आंच न हो तो कविता लिखी कैसे जायेगी?जो हुआ अच्छा हुआ. Reply ↓
हमने जो पूछा उनका हाल देखा किए वे कहर का सामानगुम थे सुम थेलौट आए हम।..फिर सुलगते रह गए अरमान।वाह…..दो पंक्तियों में कमाल …..!! Reply ↓
सुन्दर रचना गिरिजेश भाई …….आपको जन्मदिन की ढेर सारी बधाई एक बार फिर
गिरिजेश जी मेरे ब्लॉग पर आने और सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपने चंद लाइनों जो कुछ कह दिया है अद्वितीय हैआभार रचना दीक्षित
क्या बात है बहुत खूब कहा है…बधाई…नीरज
बहुत बढ़िया!!
सुलगते रहे अरमान -कब तक ?
आखिर ये अरमान कब तक सुलगते रहेंगे इन्हे तो दावानल बनना था
सही है जब अरमान सुलगते है तो धुआ भी नही उठता………बस दिल की लगी होती है ……..पर कबतक? मुझे नही पता!
फिर जाना था… काहे को अरमान सुलगाते रहे 🙂
गुम के साथ साथ सुम होना भी अच्छा लगा ! …………………………….और अरमान तो सुलगते ही रह जाय तो ही अच्छा है !
आपकी छोटंकी कवितायें गजब होती हैं । यह भी वैसी ही है ।
गज़ब की है छोटी सी छनिका …. गुम थे … सुम थे …. बहुत अच्छा लगा …..
गुम के साथ ….साथ सुम होना?ऐसा लिखना -अनूठा ख्याल लगा !अरमानो में आंच न हो तो कविता लिखी कैसे जायेगी?जो हुआ अच्छा हुआ.
गुम थे सुम थेलौट आए हम।..फिर सुलगते रह गए अरमान।क्या बात है!
हमने जो पूछा उनका हाल देखा किए वे कहर का सामानगुम थे सुम थेलौट आए हम।..फिर सुलगते रह गए अरमान।वाह…..दो पंक्तियों में कमाल …..!!
\”गुम थे सुम थे\” का अंदाज़ निराला है।