‘पु’ नाम के नरक से तारने के कारण संतान को पुत्र या पुत्री कहा जाता है। जीवन के समस्त अशुभ, असफलतायें, दाह, पीड़ायें आदि ही नरक हैं और मनुष्य़ अपनी संतति में इनसे मुक्ति की अभिलाषा रखता है। संतान को इसमें समर्थ बनाना माता पिता का दायित्त्व होता है।
इस कविता में निराला स्वार्थ और बाधाओं दोनों से मुक्ति और जीवन के कठिन मार्ग पर चलने योग्य सामर्थ्य की कामना माँ के प्रति समर्पण द्वारा करते हैं। इस हेतु वह सर्वस्व की बलि देने को भी उद्यत हैं। शब्दों का ललित प्रवाह और भाव संयोजन इस कविता को गेय और समृद्ध बनाते हैं।
मुझे इस कविता में जो सबसे उल्लेखनीय बात लगी वह है – मुक्त करूंगा तुझे अटल। माँ से माँगते तो सभी हैं लेकिन एक पग आगे बढ़ कर माँ को मुक्ति का अटल आश्वासन देना चाहे उसके लिये जो बलि देनी पड़े, इस कविता को महान बनाता है। कविता वात्सल्य की सहजता से बहुत आगे समाजोन्मुख होती है जिसमें संतान माँ के प्रति अपने दायित्त्व की पूर्ति को संकल्पित होता है। कविता प्रस्तुत है।
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दूँ
जननि, जन्म श्रम संचित पल।
बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल।
(सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)
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रेखांकन – अलका राव |
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सब अर्पण हो उन चरणों पर..
माई, आज नया कुरता पहन तेरे गोड़ छुये। यह अवसर भविष्य में मुझसे विलग न हो। बस।
जीवन के रथ पर चढ़करसदा मृत्यु पथ पर बढ़ करमहाकाल के खरतर शर सहसकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;जागे मेरे उर में तेरीमूर्ति अश्रु जल धौत विमलदृग जल से पा बल बलि कर दूँजननि, जन्म श्रम संचित पल।बहुत बहुत सुन्दर….. अतीव प्रशंसनीय.शब्द ही नहीं हैं मेरे पास .इस पोस्ट को हम तक पहुँचाने का आभार स्वीकार करें.
मातृ दिवस पर मैंने कोई भी रचना नहीं पढी,कभी नहीं पढता -परशुराम के जींस होने के कारण मैं पिता भक्त हूँ !लेकिन यह रचना पढ़ आँखें नम हुईं! क्या कहूं ! आअज सुबह सुबह ही एक ब्राहमण को आर्द्र किये हैं -ईश्वर आपका भला करे 🙂
Thanks. aapne fir yah padhne ka mauka diya – fir maan ko pranam hua – ….