मित्र!
तरुगन्ध आह्वान
ओस भीगे पत्ते
नंगे पाँव
लुप्त चरम चुर
ढूँढ़ें
गन्ध स्रोत
पुन: बालपन
वारि नासिका
शीतल मलयानिल
घास पुहुप चुन
सूँघे
छींके
छूटे कुछ हाथ
सगुन सा
कौन आए
ममता छूटी
घर पर
सुर सुर
माताएँ
खीझ
रीझ
आयु
स्सब भूलीं
याद दिलाएँ
लोट पोट
श्वान शिशु
दुलार
डाँट फटकार
पिता प्यार
लुटाएँ
बीत गई
रीत गईं
धुँधली आखें
मनुहार
मनाएँ
मित्र!
तरुगन्ध आह्वान
झूलें
समय झूलना
डार डार
पात पात
जीवन
ओल्हा पाती
पात पात
हिल जाएँ
खिल जाएँ
चलो !
Profile bedod hai … yahan ka kahan bhi sir ji
आशावादिता
…जीवन के अवयवों की।
लोट पोट श्वान शिशु दुलार डाँट फटकार अरे यार, अपन भी कई बार इस चक्कर में घर में डांट खा चुके हैं 🙂
तार की भाषा में कविता !!! सुंदर , अति सुंदर.
स्पंदन..झुरझुरी..आल्हादित मन..अद्भुत गीत!
*आल्हादित=आह्लादित
शब्द-बिन्दुओं को मिलाने पर एक सुन्दर भाव-वृत्त बन रहा है !
परसर्गों का यह निर्मम बहिष्कार ! आप तो हिन्दी को चाइनीज बना देगें !
लुप्त चरम चुरघास पुहुप चुनयह अच्छा लगा !
कविता पढ ली मैने फिर शीर्षक देखने का मन हुआ तो नीचे से ऊपर गया । ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! 🙂 🙂 🙂 अच्छा है!
कौन सा गृह विरही राग छेड़ा रे बटोही !