बन्द कर दिया लेटर बॉक्स का द्वार
तोड़ डाले सब मोबाइल,
मिटा दिए सब ई मेल पते…
ठहरे आँसू
टपके आज
तुम्हारे जाने के बाद …
बहुत दिनों के बाद।
बरसे आँसू
बहुत दिनों के बाद
मुंडेर धुली
बहुत दिनों के बाद।
बन्द कर दिया लेटर बॉक्स का द्वार
तोड़ डाले सब मोबाइल,
मिटा दिए सब ई मेल पते…
ठहरे आँसू
टपके आज
तुम्हारे जाने के बाद …
बहुत दिनों के बाद।
बरसे आँसू
बहुत दिनों के बाद
मुंडेर धुली
बहुत दिनों के बाद।
बहुत खूबसूरत नज़्म …
सुंदर कविता!
वाह ये धुली धुली मुंडेर तो जाने क्या क्या कह गई ..बहुत सुंदर अजय कुमार झा
अच्छी है! मगर आपसे ज़्यादा की उम्मीद होती है।
आह! वाह!
चलिए मन तो हल्का हुआ
ई मेल द्वारा टिप्पणी:लेटर बॉक्स , ईमेल पते , मोबाइल …और जो सन्देश इनके बिना ही पहुंचे ….दिल से दिल के तार बेतार जुड़े मन की काई सब मिट गयी जो मुंडेर धुले …
वाणी की बात पर गौर फरमाइए…!
@ पलीता विशेषज्ञ अदा जी …क्या गौर करने को कह रही है ….कविता है …सिर्फ कविता ….और पाठक/पाठिका का कविता को देखने का नजरिया ….समझी
ठहरे आँसू टपके आज तुम्हारे जाने के बाद … " बेहद भावुक पंक्तियाँ.."regards
कविता पढ़ कर संजीदा हो गया था और अरविन्द मिश्र जी का कमेन्ट पढ़ कर विलयन कुछ इस तरह का बना है कि कहने को बन नहीं रहा.
बहुत खूबसूरत है भाई ……
बहुत दिनों के बादमुंडेर धुलीबहुत दिनों के बाद। क्या प्रतीक दिया है. बेहतरीन
बेहतरीन शब्दों की संरचना..सुंदर भाव बधाई!!
तोड़ डाले सब मोबाइल,मिटा दिए सब ई मेल पते..बिलकुल नये बिम्ब हैं यह ..मज़ा आ गया ।
ठहरा हुआ बाँध टूटा है तो एक-दो गाँव तो वैसे ही बह जायेंगे !
मुंडेर यूँ नहीं धुलती…जब तक संवेदना की दबी नसें फूट नहीं जाती…बेहतरीन कविता के लिए बधाई.
संवेदना तो खूब भरी है आपमें ! यह जो शीर्षक पंक्ति है, वह मुझे कविता में चाहिए कहीं !