मुक्तछ्न्दी – ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ – क्या? अरे शेर ।

चौंक मत गर कहूँ कि 
तू जो गा दे संग 
तो फाग होली गुलाल हो
इस वक़्त न दिखा ये अंदाजे बयाँ 
कि कल दिल में मलाल हो –
जो कहना था जिस वक़्त न कहे
शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे।
माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
हर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।
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आचारज जी टाइप लोगों से अनुरोध है कि रंग में तंग न डालें। इस समय उनकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी।
 

19 thoughts on “मुक्तछ्न्दी – ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ – क्या? अरे शेर ।

  1. आचारज जी टाइप लोगों से अनुरोध है कि रंग में तंग न डालें। इस समय उनकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी।-इन लोगों की कोई लिस्ट धरे हों तो जरा बताया जाये. 🙂

  2. माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत मेंहर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ…. जोगीरा सा रा रा रा रा रा रा रा ……. (इसको बिना मतलब में जोड़ दिए हैं…. फगुनिया गए हैं हम….. )

  3. गर तू जो गा दे संग तो फाग गुलाल हो जाएन दिखा ये अंदाज़-ए-बयाँ, दिल में मलाल हो जाएआपके ख्यालों का ज़खीरा बहुत पसंद आया है..क्यूँ आपने कुछ हमख्यालों को भगाया है ???ये सारे शेर नहीं बब्बर शेर हैं ..:):)

  4. किसे पुकारा जा रहा है इतनी शिद्दत से ….वो आये तब तक हम ही सुना देते हैं एक शेर …पतझड़ में खिला जो हो उसे बहार की जरुरत क्या हैहर्फ़ रंगने हो मुहब्बत से तो रंगों की जरुरत क्या है…

  5. बतियाँ हमरी समुझ न पाएँ बउराए आचारज जी रंग रंग में फरक होत है, घबराए आचारज जी।काला मोबिल पोत वदन पर फगुनाए आचारज जीहमरे रंग को रंग न समझें दुखियाए आचारज जी।हाँ जोगीरा स र र र र र र

  6. फाग – बाज बाऊ को झाऊ – भर बसंत मुबारक रहे ,,,,, पर ,,,,,,,,,……………………………………………………………….कविवर – मृत्यु – घोषणा कैसे कर सकता कोई , धिक्कार ! हे बाऊ ! तुम हर्फ़ ही रंगों , कठिन है अर्थों का व्यापार ||……………………………………………………………….@ ई बात नहीं समझेंगे महराज !

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