सोचती रही
कपोल पर ढुलक आए आँसू
वापस आँखों में ले ले।
सोचता रहा
निकल आई आह सिसकी
शरीर में वापस ले ले।
मिलन और बिछुड़न –
युगनद्ध ।
सोचती रही
कपोल पर ढुलक आए आँसू
वापस आँखों में ले ले।
सोचता रहा
निकल आई आह सिसकी
शरीर में वापस ले ले।
मिलन और बिछुड़न –
युगनद्ध ।
मिलन बिछुड़न सन्नद्ध -युगनद्ध एक ,अब दो तीन और अनन्त भी लिखें
उफ़्फ़ ! आखों से निकले अश्रु ….वापस ..अद्भुत है जी एकदम अद्भुत ..
वाकई बहुत चमत्कृत किया इस रचना ने।
अग्र के बजाय प्रतीप के सहारे क्या खेल गए आप ! ( खेल को नकारात्मक मत लीजियेगा , कृपया )पुरहर महसूसने के बाद ऐसी कवितायेँ बनती हैं , जब कुछ ही में काव्य-सागर हिलोरें लेने लगता हो ..अब बारी 🙂 की , अस्तु ,कहीं मेरी शब्द-समझ-शक्ति फेल तो नहीं मार रही है >>> 🙂
अद्वितीय, अद्भुत और अपरिमित,मिलन विछोह की ऊँह-पोंह …और चंद पंक्तियाँ …??अविरल काव्य-रस का सोता फूट गया है जी…!!
जरूर कोई बहुत बड़ीपीर है खड़ीधत् मेरी समझइसमें ही है गड़बड़ीबात कुछ इतनी कठिन सी हैकि पल्ले ना पड़ीरे कातर मनचल उठा ले छड़ीयह कविताबहुत ऊँची भरेगी उड़ानदेखो चल पड़ी
अद्वितीय, अद्भुत और अपरिमित….
बहुत खूब. वापसी की या रोकने की क्यों सोचना. आज बर्फ गिरी है तो कल बाढ़ आयेगी ही [आज के स्टार-ज्योतिषी भले ही आज उसे न देख पायें मगर कल दावा करने ज़रूर आयेंगे]सर भी भारी नहीं ये दम भी आज घुटता नहीं, बाद मुद्दत के मेरे अश्क बाँध तोड़ चले।
अद्भुत!!
किसी की आह! किसी के अश्रु …एक जैसे ही भाव …मिलन या अलगाव ….
अद्भुत है आपकी कल्पना का विस्त्रत संसार ………. शब्द तो वही हैं जो सब प्रयोग करते हैं पर आप का सांचा बेजोड़ है ……..
ये झकास ! पिछली कविता तो पढ़ के निकल लिया था. प्रयोग ही देक्गता रह गया था.
कोई बड़ा गहन और घनीभूत क्षण अभिव्यक्त हो गया है ………(अचानक) ! वह क्षण स्वयं में पूर्ण है , समग्र है , शांत है ….क्योंकि वह किन्हीं दो ध्रुव विपरीतताओं के दुर्लभ सम्मिलन को ……….सम्मिलन के अनाहत छंद को हल्का हल्का स्पर्श कर रहा है ……..इतना ही समझ में आया ! बस !
बहुत अच्छी लगी यह कविता ! सच में !
यह जो "वापस" लेने की सोच है न…..इसी में बहुत प्रभाव है ! "वापस आँखों में ले ले। ""शरीर में वापस ले ले। '
हवा में एक तीर मारता हूँ ! शायद लग जाय !जब यह कविता लिखी गयी होगी तो पहले पहल ये भाव ठीक इसी तरह मन में नहीं आये रहे होगें ! आप कोई चीज कुछ और ढ़ग से लिखने के प्रयास में थे ! लेकिन फिर अचानक दूसरे या तीसरे बार में यह निकल आया होगा !
हम देर से आते हैं बहुधा । सब हमारा पढ़ाया छोरा (?) कहने लगा है अब, आर्जव,:)मैं उसकी टिप्पणियों में ही अटका हूँ । उनका उठना गिरना देखिये ना !
ठिठकना है यह भावनाओं का – इसलिये ही अख्तियार करते हैं यह तरीके । बहने नहीं देते भाव ! एक कोशिश है सभ्रांत होने की अभिव्यक्ति में !गलत तो नहीं ?
कपोल से ढलके हुए आँसू ..वाह क्या बात है ।