निवेदन और नरक के रस्ते – 1
नरक के रस्ते – 2
नरक के रस्ते – 3
नरक के रस्ते – 4 से जारी….
एक फसल इतनी मजबूत !
जीने के सारे विकल्पों के सीनों पर सवार
एक साथ ।
किसान विकल्पहीन ही होता है
क्या हो जब फसल का विकल्प भी
दगा दे जाय ?
गन्ना पहलवान
– बिटिया का बियाह गवना
– बबुआ का अंगरखा
– पूस की रजाई
– अम्मा की मोतियाबिन्द की दवाई
– गठिया और बिवाई
– रेहन का बेहन
– मेले की मिठाई
– कमर दर्द की सेंकाई
– कर्जे की भराई ….
गन्ना पहलवान भारी जिम्मेदारी निबाहते हैं।
सैकड़ो कोस के दायरे में उनकी धाक है
चन्नुल भी किसान
मालिक भी किसान
गन्ना पहलवान किसानों के किसान
खादी के दलाल।
प्रश्न: उनका मालिक कौन ?
उत्तर: खूँटी पर टँगी खाकी वर्दी
ब्याख्या: फेर देती है चेहरों पर जर्दी
सर्दी के बाद की सर्दी
जब जब गिनती है नोट वर्दी
खाकी हो या खादी ।
चन्नुल के देस में वर्दी और नोट का राज है
ग़जब बेहूदा समाज है
उतना ही बेहूदा मेरे मगज का मिजाज है
भगवान बड़ा कारसाज है
(अब ये कहने की क्या जरूरत थी? )….
आजादी – जनवरी है या अगस्त?
अम्माँ कौन महीना ?
बेटा माघ – माघ के लइका बाघ ।
बबुआ कौन महीना ?
बेटा सावन – सावन हे पावन ।
जनवरी है या अगस्त?
माघ है या सावन ?
क्या फर्क पड़ता है
जो जनवरी माघ की शीत न काट पाई
जो संतति मजबूत न होने पाई
क्या फर्क पड़ता है
जो अगस्त सावन की फुहार सा सुखदाई न हुआ
अगस्त में कोई तो मस्त है
वर्दी मस्त है – जय हिन्द।
जनवरी या अगस्त?
प्रलाप बन्द करो
कमाण्ड ! – थम्म
नाखूनों से दाने खँरोचना बन्द
थम गया ..
पूरी चादर खून से भीग गई है…
हवा में तैरते हरे हरे डालर नोट
इकोनॉमी ओपन है
डालर से यूरिया आएगा
यूरिये से गन्ना बढ़ेगा।
गन्ने से रूपया आएगा
रुक ! बेवकूफ ।
समस्या है
डालर निवेश किया
रिटर्न रूपया आएगा ।
बन्द करो बकवास – थम्म।
जनवरी या अगस्त?
ये लाल किले की प्राचीर पर
कौन चढ़ गया है ?
सफेद सफेद झक्क खादी।
लाल लाल डॉलर नोट
लाल किला सुन्दर बना है
कितने डॉलर में बना होगा ..
खामोश
देख सामने
कितने सुन्दर बच्चे !
बाप की कार के कंटेसियाए बच्चे
साफ सुथरी बस से सफाए बच्चे
रंग बिरंगी वर्दी में अजदियाए बच्चे
प्राचीर से गूँजता है:
मर्यादित गम्भीर
सॉफिस्टिकेटेड खदियाया स्वर
ग़जब गरिमा !
”बोलें मेरे साथ जय हिन्द !”
”जय हिन्द!”
समवेत सफेद खादी प्रत्युत्तर
“जय हिन्द!“
”इस कोने से आवाज धीमी आई
एक बार फिर बोलिए – जय हिन्द”
जय हिन्द , जय हिन्द, जय हिन्द
हिन्द, हिन्द, हिन् …द, हिन् ..
..हिन हिन भिन भिन
मक्खियों को उड़ाते
नाक से पोंटा चुआते
भेभन पोते चन्नुल के चार बच्चे
बीमार – सुखण्डी से।
कल एक मर गया।
अशोक की लाट से
शेर दरक रहे हैं
दरार पड़ रही है उनमें ।
दिल्ली के चिड़ियाघर में
जींस और खादी पहने
एक लड़की
अपने ब्वायफ्रेंड को बता रही है,
”शेर इंडेंजर्ड स्पीशीज हैं
यू सिली” । (जारी..)
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"जय हिन्द , जय हिन्द, जय हिन्दहिन्द, हिन्द, हिन् …द, हिन् ….हिन हिन भिन भिन मक्खियों को उड़ाते नाक से पोंटा चुआते भेभन पोते चन्नुल के चार बच्चेबीमार – सुखण्डी से।कल एक मर गया।टिप्पणी १: क्यों लिखते हो यह सब? लिखने से दर्द कम नहीं होता.टिप्पणी २: पुश्तों ने सींचा था अपने हिस्से के खून से मुझसे भी उम्मीद थी बिलकुल गलत थी हालांकिजो सहारा ढूंढेंइक दिन उस बेल को सूखना ही था सूख गयी लिखते रहो फिर-फिर उम्मीद जगती है शायद श्यामला हो फिर सेस्याही की नमी लेकर
एक बार फिर बोलिए – जय हिन्द”जय हिन्द , जय हिन्द, जय हिन्दहिन्द, हिन्द, हिन् …द, हिन् ….हिन हिन भिन भिन यह पढ़ा…और पुराने कुछ गीत याद आ गये…यह कविता उसी परंपरा से जुड़ रही है…
आखिर की लेने शुरुआत पर भरी पड़ी. विचार भटकाते रहिये… यही कुछ लाईने हमेशा के लिए याद रह जाती हैं.
*लेने=लाईने
गिरिजेश जी,बाप रे !! आपकी आपकी सोच, दिन-प्रतिदिन घटित होने वाली छोटी-सी छोटी बात बात पर आपकी नज़र, भाषा पर आपकी पकड़, और पाठकों पर आपकी जकड….??हम तो हैरान है…..ठगे से…..यह कविता नहीं सच है….जिसने हम पाठकों को आंदोलित कर दिया है….आपको मेरा नमन…!!!
अशोक की लाट से शेर दरक रहे हैं दरार पड़ रही है उनमें ।दिल्ली के चिड़ियाघर में जींस और खादी पहने एक लड़की अपने ब्वायफ्रेंड को बता रही है,”शेर इंडेंजर्ड स्पीशीज हैं यू सिली” Are kya kah diye aap..bahute khoob..ahhhhh..
UFF …….. DARD KI LAHAR …… KITNA DARD, AAS PAAS BIKHRA DEKHNE KA DARD… ITNA KUCH SAHNE KA DARD … ROZ MARRA KA DARD… BAHUT HI KAALJAYE RACHNA HAI …
बहुते बढिया लिखे हो भैया!सच्ची कहें……मजा आई गया……इ तो लग रहा है कि खदियाए लामरों को गन्ने से मार मार के खेदिया रहे हैं……..लगे रहिए…..
ओह्ह! आगे लिखो…जब यह पढ़ लिए तो वो भी पढ़ लेंगे…तब कहेंगे..
निरूत्तर..प्रश्नों का उत्तर..कुछ और कठिन प्रश्न शायद हो..!!..जारी..प्रश्न..जारी..!जारी..निरुत्तरता..जारी..!जारी है आलाप..गले में कुछ फंस रहा..आलाप जारी..!सोच..का सोचना..जारी है..अधकपारी…ना..ना..सोच..का सोचना जारी..वह बिंदु..और वह तिर्यक दृष्टि…जमी बरफ की नज़र..जारी..
मैं तो निशब्द हूँ बिलकुल नये अंदाज़ मे बहुत गहरी अभिव्यक्ति है पिछली पोस्ट पढने पर मजबूर हो गयी। और क्या कहूँ ? शुभकामनायें
यह अभिव्यक्ति सहज नहीं है… बहुत तकलीफ के बाद यह प्रकट होता है .. इससे फिर तकलीफ बढ जाती है लेकिन क्या करे चुप भी कैसे रहा जाये …?
चीजों को देखने का नजरिया उन्हें महत्वहीन या महत्वपूर्ण बनाता है, यह आपकी पोस्ट को पढकर जाना जा सकता है।——————क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
पता नहीं, कुछ कहूं तो लगे कि अफसर क्या जाने गांव-किसान की सेण्टीमेण्टालिटी!